द्वंद्व (The Duality)

          द्वंद्व 

कभी शिव का तांडव,
कभी सरस्वती का मधुर राग हूं।

एक पल प्रेम से मां के आंचल में खिलखिलाता,
फिर मैं ही तो पिता का होंसला - दहाड़ता एक बाघ हूं।।

कभी भोग में मन लगन,
कभी साधना का त्याग हूं ।

एक पल गांधी की शांतिपूर्ण अहिंसा,
फिर मैं ही तो भगत सिंह का उबाल - बुलंद एक इंकलाब हूं।।

कभी मोह का बंधन,
कभी संसार से उन्मुक्त विराग हूं।

एक पल दीपक की लोह सा मद्धम ही रोशन,
फिर मैं ही तो सूर्य की दहकती ज्वाला - भीषण एक आग हूं।।

                                                           - निशांत कौशल

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